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श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी

श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी हिन्‍दुओं का प्रमुख त्‍योहार है. हिन्‍दू मान्‍यताओं के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु के आठवें अवतार नटखट नंदलाल यानी कि श्रीकृष्‍ण के जन्‍मदिन को श्रीकृष्‍ण जयंती या श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी  के रूप में मनाया जाता है.  24 अगस्‍त को कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी होनी चाहिए. आपको बता दें कि कुछ लोगों के लिए अष्‍टमी तिथि का महत्‍व सबसे ज्‍यादा है वहीं कुछ लोग रोहिणी नक्षत्र होने पर ही जन्‍माष्‍टमी का पर्व मनाते हैं.    

श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी

श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी हिन्‍दुओं का प्रमुख त्‍योहार है. हिन्‍दू मान्‍यताओं के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु के आठवें अवतार नटखट नंदलाल यानी कि श्रीकृष्‍ण के जन्‍मदिन को श्रीकृष्‍ण जयंती या श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी  के रूप में मनाया जाता है.  24 अगस्‍त को कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी होनी चाहिए. आपको बता दें कि कुछ लोगों के लिए अष्‍टमी तिथि का महत्‍व सबसे ज्‍यादा है वहीं कुछ लोग रोहिणी नक्षत्र होने पर ही जन्‍माष्‍टमी का पर्व मनाते हैं.  

जन्‍माष्‍टमी कब है?

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी महत्‍व हिन्‍दू पंचांग में बहुत ज्यादा है. हिन्‍दू पंचांग के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी भद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी कि आठवें दिन मनाई जाती है. कैलेंडर के मुताबिक श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी हर साल अगस्‍त या सितंबर महीने में आती है. तिथि के हिसाब से, रोहिणी नक्षत्र को प्रधानता देने वाले लोग 24 अगस्‍त को जन्‍माष्‍टमी मना रहे है.

जन्‍माष्‍टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त

अष्‍टमी तिथि समाप्‍त: 24 अगस्‍त 2019 को सुबह 08 बजकर 32 मिनट तक. रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 24 अगस्‍त 2019 की सुबह 03 बजकर 48 मिनट से. व्रत का पारण: जानकारों के मुताबिक जन्‍माष्‍टमी के दिन व्रत रखने वालों को अष्‍टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के खत्‍म होने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए. अगर दोनों का संयोग नहीं हो पा रहा है तो अष्‍टमी या रोहिणी नक्षत्र उतरने के बाद व्रत का पारण करें.

कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी महत्‍व

कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी महत्‍व अनुसार श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्‍व है. यह हिन्‍दुओं के प्रमुख त्‍योहारों में से एक है. ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु ने श्रीकृष्‍ण के रूप में आठवां अवतार लिया था.  देश के सभी राज्‍य अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं. कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी महत्‍व अनुसार इस दिन क्‍या बच्‍चे क्‍या बूढ़े सभी अपने आराध्‍य के जन्‍म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्‍ण की महिमा का गुणगान करते हैं. दिन भर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं. वहीं, मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं और स्‍कूलों में  श्रीकृष्‍ण लीला का मंचन होता है.

जन्‍माष्‍टमी का व्रत कैसे रखें?

जन्‍माष्‍टमी का त्‍योहार पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है. इस दिन लोग दिन भर व्रत रखते हैं और अपने आराध्‍य श्री कृष्‍ण का आशीर्वाद पाने के लिए उनकी विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. सिर्फ बड़े ही नहीं बल्‍कि घर के बच्‍चे और बूढ़े भी पूरी श्रद्धा से इस व्रत को रखते हैं. जन्‍माष्‍टमी का व्रत कुछ इस तरह रखने का विधान है: – जो भक्‍त जन्‍माष्‍टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्‍हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए. – जन्‍माष्‍टमी के दिन सुबह स्‍नान करने के बाद भक्‍त व्रत का संकल्‍प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्‍टमी तिथि के खत्‍म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोला जाता है. जन्‍माष्‍टमी,श्री हरि विष्‍णु,नटखट नंदलाल,श्रीकृष्‍ण,श्रीकृष्‍ण जयंती,कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी,अष्‍टमी तिथि,जन्‍माष्‍टमी कब है,हिन्‍दू पंचांग,भद्रपद माह,शुभ मुहूर्त,जन्‍माष्‍टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त,रोहिणी नक्षत्र,जन्‍माष्‍टमी का महत्‍व,जन्‍माष्‍टमी का व्रत कैसे रखें?,जन्‍माष्‍टमी की पूजा विधि,भगवान कृष्‍ण,लड्डू गोपाल,नवमी

जन्‍माष्‍टमी पूजा विधि

जन्‍माष्‍टमी के दिन भगवान कृष्‍ण की पूजा का विधान है. अगर आप अपने घर में कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का उत्‍सव मना रहे हैं तो इस तरह भगवान की पूजा करें. हम आपको बता रहे है जन्‍माष्‍टमी पूजा विधि के बारे में… – जन्‍माष्‍टमी पूजा विधि अनुसार स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें. – अब घर के मंदिर में कृष्ण जी या लड्डू गोपाल की मूर्ति को सबसे पहले गंगा जल से स्नान कराएं. – इसके बाद मूर्ति को दूध, दही, घी, शक्कर, शहद और केसर के घोल से स्नान कराएं. – जन्‍माष्‍टमी पूजा विधि अनुसार शुद्ध जल से स्नान जरूर कराएं. – इसके बाद लड्डू गोपाल को सुंदर वस्‍त्र पहनाएं और उनका श्रृंगार करें. – रात 12 बजे भोग लगाकर लड्डू गोपाल की पूजन करें और फ‍िर आरती करें. – अब घर के सभी सदस्‍यों में प्रसाद का वितरण करें. – अगर आप व्रत कर रहे हैं तो दूसरे दिन नवमी को व्रत का पारण करें.

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